आत्म - गौरव

🌺🌺 आत्म -  गौरव 🌺🌺

बुद्ध ने घर छोड़ा। पिता समझते थे गलत है; पत्नी समझती थी गलत है; परिवार समझता था गलत है, सब समझते थे गलत है। लेकिन आज पच्चीस सौ साल बाद क्या तुम यह कहोगे कि बुद्ध ने घर छोड़ा तो बुरा किया? नहीं छोड़ते तो मनुष्य-जाति वंचित रह जाती, सदा-सदा के लिए वंचित रह जाती। एक अमृत की धार बही। मगर जब छोड़ा था तो कोई भी पक्ष में नहीं था--कोई भी! बुद्ध अपना राज्य छोड़ कर चले गए थे, इसीलिए कि राज्य में जहां भी जाते वहीं लोग समझाने आते। तो सीमा ही छोड़ दी। सीमा छोड़ दी, तो पास-पड़ोस के राजा-महाराजा आने लगे। क्योंकि वे भी उनके पिता के मित्र थे। कोई बचपन में साथ पढ़ा था; किसी की दोस्ती थी; किसी का कोई नाता-रिश्ता था; वे समझाने आने लगे। जो आता वही बुद्ध को कहता कि तुम क्या नासमझी कर रहे हो?
एक सम्राट ने तो यह भी कहा कि मेरा कोई बेटा नहीं है, अगर तू अपने बाप से नाराज है, फिकर छोड़, मेरा राज्य तेरा। चल, मेरी बेटी है, उससे तेरा विवाह किए देता हूं, तू इसको सम्हाल ले। हो सकता है बाप-बेटे की न बनती हो, कोई फिकर नहीं। अक्सर बाप-बेटों की नहीं बनती। तो यह तेरा घर है। और चिंता मत कर, तेरे पिता के राज्य से मेरा राज्य बड़ा है। तो तू कोई नुकसान में नहीं रहेगा। और तू अपने बाप का इकलौता बेटा है, आज नहीं कल बूढ़ा मर जाएगा, वह भी तेरा है। यह भी तेरा है। फायदा ही फायदा है। तू उठ!
जो आता, वही समझाता। आखिर बुद्ध को इतनी दूर निकल जाना पड़ा, जहां कि कोई बाप को जानता ही न हो, पहचानता ही न हो। अपने बाल काट डाले--सुंदर उनके बाल थे--ताकि कोई पहचान न सके, घुटमुंडे हो गए। वस्त्र पहन लिए दीन-हीन। भिखमंगे मालूम होने लगे। गांवों में न जाते, जंगलों में विचरने लगे, ताकि ये समझाने वालों से पीछा छूटे। क्योंकि अंतरात्मा से एक आवाज उठी थी कि सत्य को खोजे बिना नहीं मरना है। और अगर इन्हीं बातों में उलझे रहे, तो सत्य को खोजने का समय कहां? अवकाश कहां? सुविधा कहां?
आज तुम यह न कहोगे कि बुद्ध ने गलत किया। बुद्ध ने बड़ा उपकार किया, पूरी मनुष्य-जाति पर उपकार किया। ऐसा कल्याण किसी और दूसरे मनुष्य ने नहीं किया है। हालांकि तुम भी अगर उस समय होते तो तुम भी बुद्ध को समझाते--कि भई, यह तुम क्या कर रहे हो? पिता की सुनो, पिता बूढ़े हैं, उनको दुख मत दो। पत्नी जवान है, उसको पीड़ा मत दो। बेटा अभी-अभी पैदा हुआ है, उसको छोड़ कर भागे जा रहे हो! यह पलायनवाद है। सब कहा होता; और सब कहा था। लेकिन बुद्ध भीतर से जीए। भीतर से जीए, इसलिए महिमा प्रकट हुई, गरिमा प्रकट हुई।
सुकरात को समझदार लोगों ने समझाया था कि तू एथेंस छोड़ दे। क्योंकि यहां तू रहेगा तो फांसी लगनी निश्चित है। तू कहीं और चला जा।
लेकिन सुकरात ने एथेंस नहीं छोड़ा। उसने कहा, जो मुझे कहना है, वह एथेंस जैसे ही सुसंस्कृत समाज में कहा जा सकता है। और अगर यह सुसंस्कृत समाज मुझे मारने को तैयार है, तो फिर मैं किसी और दूसरे समाज में जाकर तो और भी मुश्किल में पड़ जाऊंगा। वह तो और जंगली है। वह तो और भी अशिष्ट और असभ्य है। फिर मुझे जो कहना है, उसको समझने वाले थोड़े से लोग कम से कम यहां हैं; मौत तो आनी है सो आएगी, मगर मैं अपनी बात कह कर जाऊंगा। कोई सुन लेगा, समझ लेगा, मैं तृप्त हो जाऊंगा।
जीसस ने सूली पर चढ़ने में अड़चन अनुभव नहीं की।
जब भी कोई व्यक्ति अपने ढंग से जीता है, अपनी शैली से जीता है, अपनी मौज से जीता है, तो मौत दो कौड़ी की होती है। वह जानता है कि उसने जीया है, इस ढंग से जीया है, इतनी परिपूर्णता से जीया है कि इस परिपूर्ण जीवन का कोई अंत नहीं हो सकता। मौत आएगी और चली जाएगी, मैं रहूंगा।
लेकिन रामछबि, ऐसा तुम्हें न हो सकेगा। तुम तो अपने से जी ही नहीं रहे। तुम्हें तो आत्मा का पता ही कैसे चलेगा? आत्मा के पता करने का ढंग ही यही है--अपने ढंग से जीओ। जो देखना है, देखो; जो करना है, करो; जैसा जीना है, वैसा जीओ। किसी के चरणों में गिरना है, तो गिर जाओ। और किसी के चरणों में नहीं गिरना है, तो चाहे गर्दन कट जाए, मत गिरना। मगर अपनी आत्मा को गौरव दो।

"लोग क्या कहेंगे?'

सिर पर कपड़ा बांधने का रहस्य: मंदिर, कब्रें - अशरीरी आत्माओं से संबंधित होने के उपाय

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🕉 *सिर पर कपड़ा बांधने का रहस्य: मंदिर, कब्रें - अशरीरी आत्माओं से संबंधित होने के उपाय* 🕉

दूसरी जो बात है सिर में कुछ बांधकर गुरुद्वारा या किसी मंदिर या किसी पवित्र जगह में प्रवेश की बात है। ध्यान में भी बहुत फकीरों ने सिर में कुछ बांधकर ही प्रयोग करने की कोशिश की है। उसका उपयोग है। क्योंकि जब तुम्हारे भीतर ऊर्जा जगती है तो तुम्हारे सिर पर बहुत भारी बोझ की संभावना हो जाती है। और अगर तुमने कुछ बांधा है तो उस ऊर्जा के विकीर्ण होने की संभावना नहीं होती, उस ऊर्जा के वापस आत्मसात हो जाने की संभावना होती है।

तो बांधना उपयोगी सिद्ध हुआ है, बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। अगर तुम ध्यान, कपड़ा बांधकर सिर पर करोगे, तो तुम फर्क अनुभव करोगे फौरन; क्योंकि जिस काम में तुम्हें पंद्रह दिन लगते, उसमें पांच दिन लगेंगे। क्योंकि तुम्हारी ऊर्जा जब सिर में पहुंचती है तो उसके विकीर्ण होने की संभावना है, उसके बिखर जाने की संभावना है। अगर वह बंध सके और एक वर्तुल बन सके तो उसका अनुभव प्रगाढ़ और गहरा हो जाएगा।

लेकिन अब तो वह औपचारिक है, मंदिर में किसी का जाना या गुरुद्वारे में किसी का सिर पर कपड़ा बांधकर जाना बिलकुल औपचारिक है। उसका अब कोई अर्थ नहीं रह गया है। लेकिन कहीं उसमें अर्थ है।

और व्यक्ति के चरणों में सिर रखकर तो कोई ऊर्जा पाई जा सके, व्यक्ति के हाथ से भी कोई ऊर्जा आशीर्वाद में मिल सकती है, लेकिन एक आदमी एक मंदिर में, एक वेदी पर, एक समाधि पर, एक मूर्ति के सामने सिर झुकाता है, इसमें क्या हो सकता है? तो इसमें भी बहुत सी बातें हैं; एक दो—तीन बातें समझ लेने जैसी हैं।

मंदिर, कब्रें— अशरीरी आत्माओं से संबंधित होने के उपाय:

पहली बात तो यह है कि ये सारी की सारी मूर्तियां एक बहुत ही वैज्ञानिक व्यवस्था से कभी निर्मित की गई थीं। जैसे समझें कि मैं मरने लग और दस आदमी मुझे प्रेम करनेवाले हैं, जिन्होंने मेरे भीतर कुछ पाया और खोजा और देखा था, और मरते वक्त वे मुझसे पूछते हैं कि पीछे भी हम आपको याद करना चाहें तो कैसे करें?

तो एक प्रतीक तय किया जा सकता है मेरे और उनके बीच, जो मेरे शरीर के गिर जाने के बाद उनके काम आ सके; एक प्रतीक तय किया जा सकता है। वह कोई भी प्रतीक हो सकता है—वह एक मूर्ति हो सकती है, एक पत्थर हो सकता है, एक वृक्ष हो सकता है, एक चबूतरा हो सकता है; मेरी समाधि हो सकती है, कब्र हो सकती है, मेरा कपड़ा हो सकता है, मेरी खड़ाऊं हो सकती है—कुछ भी हो सकता है। लेकिन वह मेरे और उनके, दोनों के बीच तय होना चाहिए। वह एक समझौता है। वह उनके अकेले से तय नहीं होगा; उसमें मेरी गवाही और मेरी स्वीकृति और मेरे हस्ताक्षर होने चाहिए—कि मैं उनसे कहूं कि अगर तुम इस चीज को सामने रखकर स्मरण करोगे, तो मैं अभौतिक स्थिति में भी मौजूद हो जाऊंगा। यह मेरा वायदा होना चाहिए। तो इस वायदे के अनुकूल काम होता है, बिलकुल होता है।

इसलिए ऐसे मंदिर हैं जो जीवित हैं, और ऐसे मंदिर हैं जो मृत हैं। मृत मंदिर वे हैं जो इकतरफा बनाए गए हैं, जिनमें दूसरी तरफ का कोई आश्वासन नहीं है। हमारा दिल है, हम एक बुद्ध का मंदिर बना लें। वह मृत मंदिर होगा; क्योंकि दूसरी तरफ से कोई आश्वासन नहीं है। जीवित मंदिर भी हैं, जिनमें दूसरी तरफ से आश्वासन भी है; और उस आश्वासन के आधार पर उस आदमी का वचन है।  

⚜ *जिन खोजा तिन पाइया* ⚜

🌹♥🌎 *sho* 🙏🏻♥🌹