Unconsciousness to Consciousness

"You have to accept the fact that you are living alone – maybe in a crowd, but you are living alone; maybe with your wife, girlfriend, boyfriend, but they are alone in their aloneness, you are alone in your aloneness, and those alonenesses don´t touch each other, never touch each other.

That you may live with someone for twenty years, thirty years, fifty years – it makes no difference, you will remain strangers. Always and always you will be strangers. Accept the fact that we are strangers; that we don´t know who you are, that you don´t know who I am. I myself don´t know who I am, so how can you know? But people are presuming that the wife should know the husband, the husband is assuming the wife should know the husband. Everybody is functioning as if everybody is a mind reader, and he should know, before you say it, your needs, your problems. He should know, she should know – and they should do something. Now this is all nonsense.

Nobody knows you, not even you, so don´t expect that anybody else should know you; it is not possible in the very nature of things. We are strangers. Perhaps by chance we have met and we are together, but our aloneness is there. Don´t forget it, because you have to work upon it. Only from there is your redemption, your salvation. But you are doing just the opposite: how to forget your aloneness? The boyfriend, the girlfriend; go to the movie, the football match; get lost in the crowd, dance in the disco, forget yourself, drink alcohol, take drugs, but somehow don´t let this aloneness come to your conscious mind – and there lies the whole secret.

You have to accept your aloneness, which in no way you can avoid. And there is no way to change its nature. It is your authentic reality. It is you."

~ Osho - Book: From Unconsciousness to Consciousness, Talk #15

ध्यान की विधियां

🌸जिन लोगों को मन के पार जाना है, उन्हें हृदय,
मस्तिष्क दोनों से उतरकर नाभि के पास वापस लौटना होता है। अगर आप फिर से अपनी चेतना को नाभि
के पास अनुभव कर सकें, तो आपका मन तत्क्षण ठहर जाएगा।
🌸तो इस ध्यान की प्रक्रिया के लिए, जिसको मैं निश्चल ध्यान योग की तरफ एक विधि कहता हूं दो बातें ध्यान में रखने जैसी जरूरी हैं। जैसा कि सूफी फकीरों को अगर आपने देखा हो प्रार्थना
करते, या मुसलमानों को आपने नमाज पढ़ते देखा हो, तो जिस भांति घुटने मोड़कर वे बैठते हैं वैसे घुटने मोड़कर
बैठ जाएं। बच्चे के घुटने ठीक उसी तरह मुड़े होते हैं मां के गर्भ में।
🌷आंख बंद कर लें, शरीर को ढीला छोड़ दें और श्वास को बिलकुल शिथिल छोड़ दें, रिलैक्स छोड़ दें, ताकि श्वास जितनी धीमी और जितनी
आहिस्ता आए—जाए, उतना अच्छा। श्वास जैसे न्यून हो जाए, शांत हो जाए। श्वास को दबाकर शांत नहीं किया जा सकता है। अगर आप रोकेंगे, तो श्वास तेजी से चलने लगेगी।
रोकें मत, सिर्फ ढीला छोड़ दें।
आंख बंद कर लें, और अपनी चेतना को भीतर नाभि के पास ले आएं। सिर से उतारें
हृदय पर, हृदय से उतारें नाभि पर। नाभि के पास चेतना को ले जाएं। श्वास का हल्का—सा कंपन पेट को
नीचे—ऊपर करता रहेगा। आप अपने ध्यान को आंख बंद करके वहीं ले आएं, जहां
नाभि कंपित हो रही है। श्वास के धक्के से पेट ऊपर—नीचे हो रहा है, आंख बंद करके ध्यान को वहीं ले आएं।
🌸शरीर को ढीला छोड़ते जाएं। थोड़ी ही देर में
शरीर आपका आगे झुकेगा और सिर जाकर जमीन से लग जाएगा। उसे छोड़ दें और झुक जाने दें।
जब सिर आपका जमीन से लग जाएगा, तब आप ठीक उस हालत में आ गए, जिस
हालत में बच्चा मां के पेट में होता है। शांत होने के
लिए इससे ज्यादा कीमती आसन जगत में कोई भी नहीं है।
*🌷आसन ऐसा हो जाए, जैसा गर्भ में बच्चे का होता है;*और आपका ध्यान नाभि पर चला जाए। बच्चे का ध्यान और चेतना नाभि में होती है। आपका ध्यान
भी नाभि पर चला जाए।
अनेक बार ध्यान उचट जाएगा, कहीं कोई आवाज होगी, ध्यान चला जाएगा।
कहीं कोई बोल देगा कुछ, ध्यान चला जाएगा। नहीं कहीं कुछ होगा, तो
भीतर कोई विचार आ जाएगा, और ध्यान हट
जाएगा। उससे लड़े मत। अगर ध्यान हट जाए, चिंता मत करें। जैसे ही खयाल में आए कि ध्यान हट गया, वापस अपने ध्यान को नाभि पर ले आएं।
🌷किसी कलह में न पड़े, किसी कांफ्लिक्ट में न पड़े कि यह मन मेरा क्यों हटा! यह मन बड़ा चंचल है, यह क्यों हटा! नहीं हटना चाहिए। इस सब व्यर्थ की बात में मत पड़े। जब भी खयाल आ जाए, वापस नाभि पर अपने ध्यान को ले आएं। और चालीस मिनट कम से कम— ज्यादा कितनी भी देर कोई रह सकता है—ठीक ऐसे बच्चे की हालत में मां के गर्भ में पड़े रहें। संभावना तो यह
है कि दो—चार—आठ दिन के प्रयोग में ही आपको एक गहरी निश्चलता भीतर अनुभव होनी शुरू हो जाएगी।
🌸ठीक आप बच्चे के जैसी सरल चेतना में प्रवेश कर जाएंगे। मन ठहरा हुआ मालूम पड़ेगा। जितना नाभि के पास होंगे, उतनी देर मन ठहरा रहेगा। और जब नाभि के पास रहना आसान हो जाएगा, तो मन बिलकुल ठहर जाएगा। मन भी चलता है, हृदय भी चलता है, नाभि चलती नहीं। मन की भी दौड़ है, विचार की भी दौड़ है, भाव की भी दौड़ है, नाभि
की कोई दौड़ नहीं। अगर
ठीक से समझें, तो मन भी भविष्य में होता है, हृदय भी भविष्य में होता
है, नाभि वर्तमान में होती है—
*🌷जस्ट इन दि मोमेंट, हियर एंड नाउ, अभी और यहीं।*
जो आदमी नाभि के पास जितना जाएगा अपनी चेतना को लेकर, उतना ही वर्तमान के करीब आ जाएगा। जैसे बच्चा नाभि से जुड़ा होता है मां से, ऐसे ही एक अज्ञात नाभि के द्वार से हम अस्तित्व से जुड़े हैं। नाभि ही द्वार है।

🌸जिन लोगों को—शायद दो—चार लोगों को यहां भी
— कभी अगर शरीर के बाहर
होने का कोई अनुभव हुआ हो। पृथ्वी पर बहुत लोगों को कभी—कभी, अचानक, आकस्मिक हो जाता है। अचानक लगता है कि मैं शरीर के बाहर हो गया। तो जिन लोगों को भी शरीर के बाहर होने का आकस्मिक, या ध्यान से, या किसी साधना से अनुभव हुआ हो, उनको एक अनुभव निश्चित होता
है, कि जब वे अपने को शरीर के बाहर पाते हैं, तो बहुत हैरानी से देखते हैं कि उनके और उनके शरीर के बीच, जो नीचे पड़ा है, उसकी नाभि से कोई एक प्रकाश की किरण की भांति कोई चीज उन्हें जोड़े हुए है।

🌸पश्चिम में वैज्ञानिक उसे सिल्वर कॉर्ड, रजत— रज्जु का नाम देते हैं। जैसे हम मां से जुड़े होते हैं इस भौतिक शरीर से, ऐसे ही इस बड़े जगत, इस बड़े अस्तित्व से, इस प्रकृति या अस्तित्व के 
गर्भ से भी हम नाभि से ही
जुड़े होते हैं। तो जैसे ही आप नाभि के निकट अपनी चेतना को लाते हैं, मन निश्चल हो जाता है।
*🌷जीसस का बहुत अदभुत वचन है—*
🌸शायद ही ईसाई उसका अर्थ समझ पाए—जीसस ने कहा है कि तुम तभी मेरे प्रभु के राज्य में प्रवेश कर सकोगे,
जब तुम छोटे बच्चों की भांति हो जाओ। लेकिन मोटे अर्थ में इसका यही अर्थ हुआ कि हम बच्चों की तरह सरल
हो जाएं। लेकिन गहरे वैज्ञानिक अर्थ में इसका अर्थ
होता है कि हम बच्चे की उस
आत्यंतिक अवस्था में पहुंच जाएं, जब बच्चा होता ही नहीं, मां ही होती है। और बच्चा मां के सहारे ही जी
रहा होता है। न अपनी कोई हृदय की धड़कन होती है, न अपना कोई मस्तिष्क होता; बच्चा पूरा समर्पित, मां के अस्तित्व का अंग होता है।

🌷ठीक ऐसी ही घटना
निश्चल ध्यान योग में घटती है। आप समाप्त हो जाते हैं और परमात्मा के साथ
एकीभाव हो जाता है। और परमात्मा के द्वारा आप जीने लगते हैं। यह जो कृष्णज ने कहा है कि निश्चल ध्यान योग से मुझमें एकीभाव को स्थित हो जाता है, इसका ठीक वही अर्थ है, जो बच्चे और मां के बीच स्थूल अर्थ है, वही अर्थ साधक और परमात्मा के बीच सूक्ष्म अर्थ है। इस प्रयोग को थोड़ा करेंगे, तो जो अर्थ स्पष्ट होंगे, वे अर्थ शब्दों से
स्पष्ट नहीं किए जा सकते।

*💐ओशो*
*🌷गीता दर्शन–भाग–5प्रवचन–11 प्रवचन–116*
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ध्यान की विधिया

*🌷ध्यान की विधियां🌷*

🌺ध्यान करने की अनेकों विधियों में एक विधि यह है कि ध्यान किसी भी विधि से किया नहीं जाता, हो जाता है। ध्यान की योग और तंत्र में हजारों विधियां बताई गई है। हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा साधु संगतों में अनेक विधि और क्रियाओं का प्रचलन है। विधि और क्रियाएं आपकी शारीरिक और मानसिक तंद्रा को तोड़ने के लिए है जिससे की आप ध्यानपूर्ण हो जाएं। यहां प्रस्तुत है ध्यान की सरलतम विधियां, लेकिन चमत्कारिक।

🌸विशेष : ध्यान की हजारों विधियां हैं। भगवान शंकर ने माँ पार्वती को 112 विधियां बताई थी जो 'विज्ञान भैरव तंत्र' में संग्रहित हैं। इसके अलावा वेद, पुराण और उपनिषदों में ढेरों विधियां है। संत, महात्मा विधियां बताते रहते हैं। उनमें से खासकर 'ओशो रजनीश' ने अपने प्रवचनों में ध्यान की 150 से ज्यादा विधियों का वर्णन किया है।

🌺1- सिद्धासन में बैठकर सर्वप्रथम भीतर की वायु को श्वासों के द्वारा गहराई से बाहर निकाले। अर्थात रेचक करें। फिर कुछ समय के लिए आंखें बंदकर केवल श्वासों को गहरा-गहरा लें और छोड़ें। इस प्रक्रिया में शरीर की दूषित वायु बाहर निकलकर मस्तिष्‍क शांत और तन-मन प्रफुल्लित हो जाएगा। ऐसा प्रतिदिन करते रहने से ध्‍यान जाग्रत होने लगेगा।

🌺2- सिद्धासन में आंखे बंद करके बैठ जाएं। फिर अपने शरीर और मन पर से तनाव हटा दें अर्थात उसे ढीला छोड़ दें। चेहरे पर से भी तनाव हटा दें। बिल्कुल शांत भाव को महसूस करें। महसूस करें कि आपका संपूर्ण शरीर और मन पूरी तरह शांत हो रहा है। नाखून से सिर तक सभी अंग शिथिल हो गए हैं। इस अवस्था में 10 मिनट तक रहें। यह काफी है साक्षी भाव को जानने के लिए।

🌸3- किसी भी सुखासन में आंखें बंदकर शांत व स्थिर होकर बैठ जाएं। फिर बारी-बारी से अपने शरीर के पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक अवलोकन करें। इस दौरान महसूस करते जाएं कि आप जिस-जिस अंग का अलोकन कर रहे हैं वह अंग स्वस्थ व सुंदर होता जा रहा है। यह है सेहत का रहस्य। शरीर और मन को तैयार करें ध्यान के लिए।

🌸4. चौथी विधि क्रांतिकारी विधि है जिसका इस्तेमाल अधिक से अधिक लोग करते आएं हैं। इस विधि को कहते हैं साक्षी भाव या दृष्टा भाव में रहना। अर्थात देखना ही सबकुछ हो। देखने के दौरान सोचना बिल्कुल नहीं। यह ध्यान विधि आप कभी भी, कहीं भी कर सकते हैं। सड़क पर चलते हुए इसका प्रयोग अच्छे से किया जा सकता है।

🌺देखें और महसूस करें कि आपके मस्तिष्क में 'विचार और भाव' किसी छत्ते पर भिनभिना रही मधुमक्खी की तरह हैं जिन्हें हटाकर 'मधु' का मजा लिया जा सकता है।

🌸उपरोक्त तीनों ही तरह की सरलतम ध्यान विधियों के दौरान वातावरण को सुगंध और संगीत से तरोताजा और आध्यात्मिक बनाएं। चौथी तरह की विधि के लिए सुबह और शाम के सुहाने वातावरण का उपयोग करें।
*⚫ध्यान करने के लिए सबसे उपयुक्त विधि |* dhyan ki vidhi
🌷 -ध्यान में बैठने से पहले आपको सब कुछ शांत करना पड़ेगा, जैसे आसपास का वातावरण, आपका शरीर इत्यादि | आप किसी शांत जगह पर बैठकर आसपास के वातावरण को शांत कर सकते है लेकिन शरीर को शांत करके ध्यान मग्न होना थोडा मुश्किल होता है | जैसे कोई भी पूजा या हवन करने से पहले मन्त्र उपचार होता है जैसे अग्नि शांति, वायु शांति, वनस्पति शांति इत्यादि इसका मतलब यही होता है कि ब्रह्माण्ड में ये सब चीजों को शांत करने के बाद ही पुरे ब्रह्माण्ड में शांति बनायीं जा सकती है और परम आत्मा का वास हो सकता है उसी तरीके से आपको अपने शरीर की इन सब चीजों को शांत करना होगा तभी आप ध्यान कर सकते हो इसके लिए आप आसनों का प्रयोग कर सकते हो आसन करके आप पुरे शरीर को शिथिल करे जिससे भूमि, गगन, वायु, अग्नि, नीर जिन चीजों से ये शरीर बना है ये सब शांत हो जाते है और शरीर फिर आराम चाहता है उसके बाद फिर स्वांस को शांत करने के लिए आप अनुलोम विलोम योग करे जिससे आपकी स्वांस शांत होगी उसके बाद शरीर और स्वांस को शांत करने के बाद अपने मस्तिष्क को जाग्रत करने की जरुरत होती है उसके लिए आपको आपने मस्तिष्क को vibrate करना पड़ेगा उसके लिए आप आँख और कान को हाथ की अंगुलियों से बंद करके ॐ शब्द का उच्चारण करो ओ अक्षर को करीब आपनी स्वांस का 25% और म अक्षर को अपनी स्वांस का करीब 75% बोले इससे आपके मस्तिष्क में vibration जैसी क्रिया उत्पन्न होगी इसकी बजह से आपको आपने मस्तिष्क में हल्कापन महसूस होगा उसके बाद सीधे सीधे ध्यान मुद्रा में चले जाय तब आप सही से ध्यान कर पाएंगे ध्यान करते समय आप अपनी आँखों को बंद करके आँखों की पुतलियों को नाक के ठीक ऊपर की तरफ देखने की कोशिश करे जैसे ही आप ध्यान मुद्रा में जायेंगे आपको कुछ रंग दिखाई देंगे आप उन रंगों को आपने मस्तिष्क से सोचकर अपने आप से जोड़ने की कोशिश करे जैसे लाल रंग समझो कि ये आपके शरीर में रक्त संचार हो रहा है उसके बाद जैसे कुछ अन्धकार जैसा दिखाई दे तो समझो ये मेरे रक्त संचार के साथ मेरे शरीर में जो अशुद्धिया है वो है फिर ईश्वर से प्रार्थना करो कि हें परमात्मा जो आपका अंश आत्मा इस शरीर में वास करता है इस शरीर को शुद्ध करने में मदद करे और मेरे ऊपर सकारात्मक उर्जा प्रवाहित करे उसके बाद आपको हरा या सफ़ेद रंग दिखाई देना शुरू हो जायेंगे आप उनपर ही पूरा ध्यान लगाए कि बस परमात्मा आपके अन्दर सकारात्मक उर्जा प्रवाहित कर रहा है उसको ही ध्यान रखते हुए ध्यान लगाए फिर आप कुछ अलग जैसा महसूस करेंगे | करके देखो अच्चा लगता है !!!
*⚫अत्यंत सरल ध्यान योग विधि |*
कैसे करें ध्यान?

🌺यह महत्वपूर्ण सवाल है। यह उसी तरह है कि हम पूछें कि कैसे श्वास लें, कैसे जीवन जीएं, आपसे सवाल पूछा जा सकता है कि क्या आप हंसना और रोना सीखते हैं या कि पूछते हैं कि कैसे रोएं या हंसे? सच मानो तो हमें कभी किसी ने नहीं सिखाया की हम कैसे पैदा हों। ध्यान हमारा स्वभाव है, जिसे हमने चकाचौंध के चक्कर में खो दिया है।
*⚫ध्यान के शुरुआती तत्व-*

1. श्वास की गति
2.मानसिक हलचल
3. ध्यान का लक्ष्य
4.होशपूर्वक जीना।
उक्त चारों पर ध्यान दें तो तो आप ध्यान करना सीख जाएंगे।
*⚫ध्यान योग की सरलतम विधियां | Easiest methods of yoga*

*🌷श्वास का महत्व :*
🌸ध्यान में श्वास की गति को आवश्यक तत्व के रूप में मान्यता दी गई है। इसी से हम भीतरी और बाहरी दुनिया से जुड़े हैं। श्वास की गति तीन तरीके से बदलती है-
1.मनोभाव
2.वातावरण
3.शारीरिक हलचल।
इसमें मन और मस्तिष्क के द्वारा श्वास की गति ज्यादा संचालित होती है। जैसे क्रोध और खुशी में इसकी गति में भारी अंतर रहता है।श्वास को नियंत्रित करने से सभी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसीलिए श्वास क्रिया द्वारा ध्यान को केन्द्रित और सक्रिय करने में मदद मिलती है।
श्वास की गति से ही हमारी आयु घटती और बढ़ती है। ध्यान करते समय जब मन अस्थिर होकर भटक रहा हो उस समय श्वसन क्रिया पर ध्यान केन्द्रित करने से धीरे-धीरे मन और मस्तिष्क स्थिर हो जाता है और ध्यान लगने लगता है। ध्यान करते समय गहरी श्वास लेकर धीरे-धीरे से श्वास छोड़ने की क्रिया से जहां शरीरिक , मानसिक लाभ मिलता है,

*⚫मानसिक हलचल :*
🌸ध्यान करने या ध्यान में होने के लिए मन और मस्तिष्क की गति को समझना जरूरी है। गति से तात्पर्य यह कि क्यों हम खयालों में खो जाते हैं, क्यों विचारों को ही सोचते रहते हैं या कि विचार करते रहते हैं या कि धुन, कल्पना आदि में खो जाते हैं। इस सबको रोकने के लिए ही कुछ उपाय हैं- पहला आंखें बंदकर पुतलियों को स्थिर करें। दूसरा जीभ को जरा भी ना हिलाएं उसे पूर्णत: स्थिर रखें। तीसरा जब भी किसी भी प्रकार का विचार आए तो तुरंत ही सोचना बंद कर सजग हो जाएं। इसी जबरदस्ती न करें बल्कि सहज योग अपनाएं।

*🌺निराकार ध्यान :*
⚫ध्यान करते समय देखने को ही लक्ष्य बनाएं। दूसरे नंबर पर सुनने को रखें। ध्यान दें, गौर करें कि बाहर जो ढेर सारी आवाजें हैं उनमें एक आवाज ऐसी है जो सतत जारी रहती है आवाज, फेन की आवाज जैसी आवाज या जैसे कोई कर रहा है ॐ का उच्चारण। अर्थात सन्नाटे की आवाज। इसी तरह शरीर के भीतर भी आवाज जारी है। ध्यान दें। सुनने और बंद आंखों के सामने छाए अंधेरे को देखने का प्रयास करें। इसे कहते हैं निराकार ध्यान।

*🌺रोगोपचार की दृष्टि से उपयोगी अन्य प्राणायाम |*

*🌷आकार ध्यान :*
🌸आकार ध्यान में प्रकृति और हरे-भरे वृक्षों की कल्पना की जाती है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि किसी पहाड़ की चोटी पर बैठे हैं और मस्त हवा चल रही है। यह भी कल्पना कर सकते हैं कि आपका ईष्टदेव आपके सामने खड़ा हैं। 'कल्पना ध्यान' को इसलिए करते हैं ताकि शुरुआत में हम मन को इधर उधर भटकाने से रोक पाएं।

*⚫होशपूर्वक जीना :*
🌷क्या सच में ही आप ध्यान में जी रहे हैं? ध्यान में जीना सबसे मुश्किल कार्य है। व्यक्ति कुछ क्षण के लिए ही होश में रहता है और फिर पुन: यंत्रवत जीने लगता है। इस यंत्रवत जीवन को जीना छोड़ देना ही ध्यान है।जैसे की आप गाड़ी चला रहे हैं, लेकिन क्या आपको इसका पूरा पूरा ध्यान है कि 'आप' गाड़ी चला रहे हैं। आपका हाथ कहां हैं, पैर कहां है और आप देख कहां रहे हैं। फिर जो देख रहे हैं पूर्णत: होशपूर्वक है कि आप देख रहे हैं वह भी इस धरती पर। कभी आपने गूगल अर्थ का इस्तेमाल किया होगा। उसे आप झूम इन और झूम ऑउट करके देखें। बस उसी तरह अपनी स्थिति जानें। कोई है जो बहुत ऊपर से आपको देख रहा है। शायद आप ही हों।
*"सिरदर्द को देखना—( ध्यान )"*
🌺अब जब भी आपको सिरदर्द हो तो एक छोटी सी ध्यान की विधि का प्रयोग करें—सिर्फ प्रयोगात्मपक रूप से—बाद में आप बड़ी बीमारियों में और लक्षणों में भी प्रयोग कर सकते है।
जब भी आपको सिरदर्द हो, एक छोटा सा प्रयोग करें। शांत बैठ जाएं और उसे देखें, अच्छी तरह से देखें—दुश्मन की तरह नहीं। यदि आप उसे अपने दुश्मन की तरह देखेंगे, तो अच्छे से नहीं देख पाएंगे। आप देखने से बचेंगे। कौन अपने दुश्मन को देखना चाहता है? हर कोई बचता है। शांत बैठ जाएं और सि‍रदर्द को देखें—बिना किसी भाव के कि वह रूक जाए, बिना किसी इच्छा के, कोई संघर्ष नहीं, कोई लड़ाई नहीं, कोई प्रतिरोध नहीं। शांति से देखते रहें, ताकि यदि वह आपको कुछ कहना चाहे तो कह सके। उसमें कोई सांकेतिक संदेश है। अगर आप शांति से देखते रहे तो चकित हो जाएंगे। पहली बात—जितना ज्यादा आप देखोगे, उतना ज्यादा वह तेज होगा। और आप थोड़े उलझन में पड़ेंगे—यदि सिरदर्द तेज हो रहा है तो यह विधि कैसे मदद करेगी। यह तेज हो रहा है, क्योंकि पहले आप उसे टाल रहे थे। सि‍रदर्द तो उतना ही था, लेकिन आप उसे टाल रहे थे, दबा रहे थे—एस्प्रोस के बिना भी उसे दबा रहे थे। जब आप उसे देखते है तो दमन हट जाता है। और सि‍रदर्द अपनी सहज तीव्रता में प्रकट होता है। अब आप उसे खुले कानों से रूई ड़ाले बिना सुन रहे है। पहली बात: वह तेज हो जाएगा। यदि वह तेज हो रहा है तो आप संतुष्ट हो सकते है कि आप ठीक से देख रहे है। यदि तेज नहीं हो रहा है तो अभी आप देख नहीं रहे है; अभी आप टाल रहे है। दूसरी बात—वह एक बिंदु पर सिमट आएगा; वह बड़ी जगह पर फैला हुआ नहीं रहेगा। पहले आपको लगता था कि मेरा पूरा सिर दुःख रहा है। अब आप देखेंगे कि पूरा सिर नहीं, केवल थोड़ी सी जगह पर दर्द है। यह भी एक संकेत है कि आप और भी गहराई से उसे देख रहे है। दर्द कि फैली हुई अनुभूति एक चालाकी है—यह भी उसे टालने का एक ढ़ंग रहा है। दर्द यदि एक ही बिंदु पर हो तो वह और भी तीव्र होगा। तो हम एक भ्रम पैदा करते है कि पूरा सर ही दुःख रहा है। उसे देखें—और वह छोटी से छोटी जगह में सिमटता जाएगा। और एक क्षण आएगा जब वह सुई की नोक जितनी जगह पर सिमट आएगा—अत्यंत घनीभूत, अत्य धिक पैना, बहुत तेज। आपने ऐसा सिरदर्द कभी नहीं जाना होगा। लेकिन बहुत ही छोटी जगह पर सीमित। उसे देखते रहें।
और फिर तीसरी और सबसे महत्वेपूर्ण घटना घटेगी। यदि आप तब भी देखते ही रहे जब दर्द बहुत तीव्र और सीमित और एक ही बिंदु पर केंद्रित है, तो आप कई बार देखेंगे कि वह खो गया है। जब आपका देखना पूर्ण होगा तो वह खो जाएगा। ओ जब वह खो जाएगा तब उसकी झलक मिलेगी कि वह कहां से आ रहा है—क्याए कारण है। जब प्रभाव खो जाएगा तो आप कारण को देख सकेंगे। ऐसा कई बार होगा फिर सिरदर्द वापस आ जाएगा। जब भी आपकी दृष्टि समग्र होगी, वह खो जाएगा। और जब वह खोता है तो उसके पीछे छिपा हुआ ही उसका कारण होता है। और आप हैरान हो जाएंगे—आपका मन कारण बताने के लिए तैयार है। और एक हजार एक कारण हो सकते है। सबसे वही अलार्म दि‍या जाता है, क्योंकि अलार्म देने कि प्रणाली सरल है। आपके शरीर में बहुत अलार्म नहीं है। अलग-अलग कारणों के लिए वही अलार्म, वही चेतावनी दी जाती है। हो सकता है हाल ही में आपको क्रोध आया हो और आपने उसे अभिव्यक्तव न किया हो। अचानक वह क्रोध प्रकट होगा। आप देखेंगे अपका सारा क्रोध जो आप मवाद की तरह भीतर ढ़ो रहे है। अब यह भारी हो गया है और यह क्रोध निकलना चाहता है। उसे रेचन की आवश्य़कता है। तो उसे निकाल दें, उसका रेचन कर दें। और तत्क्षाण आप देखेंगे कि सिरदर्द गायब हो गया है। और न एस्प्रोा की जरूरत है, न किसी चिकित्सार की।

*💐ओशो—( आरेंज बुक )*
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माटी कहे कुम्‍हार सूं

दूसरे महायुद्ध में, किसी देश में सैनिकों की भर्ती हो रही थी। जल्दी-जल्दी सैनिक चाहिए थे। हर कोई भर्ती हो रहा था। एक आदमी सैनिक भर्ती के दफ्तर में गया, एक जवान आदमी। उसने फार्म भरा। जो अफसर उसे भर्ती करने को था,उसने पूछा, वह नौ-सेना का, जल-सेना का अधिकारी था और जल-सेना की भर्ती कर रहा था। उसने पूछा कि मित्र, तुम अब तक कौन सा काम करते रहे हो? उस आदमी ने कहा, मैं?उसने कहा, आई एम एन ऊगल-गूगल मेकर,कि मैं ऊगल-गूगल बनाने वाला आदमी हूं।

अब यह ऊगल-गूगल कभी उस अफसर ने जीवन में सुना भी नहीं था कि क्या चीज है?यह ईश्वर, आत्मा जैसा शब्द मालूम पड़ा। लेकिन अगर वह यह कहे कि मैं नहीं जानता,ऊगल-गूगल क्या है, तो यह आदमी क्या सोचेगा? इतना बड़ा आफिसर, और जानता नहीं कि ऊगल-गूगल क्या है? उसने कहा,अच्छा-अच्छा, तो तुम ऊगल-गूगल बनाते हो?जल-सेना में तो जरूरत भी होती है ऐसे आदमियों की। उसने जल्दी से उसको फार्म दिया कि कहीं इसे पता न चल जाए कि मैं नहीं जानता हूं कि ऊगल-गूगल क्या होता है। उसने सोचा जरूर जल-सेना में कोई चीज होती होगी--ऊगल-गूगल!

उस आदमी को उसने, जल-सेना का जो इंजीनियर था, उस स्टाफ में, उसके पास भेजा। उसने भी पूछा, आप क्या करते हैं? उसने कहा,मैं ऊगल-गूगल बनाता हूं। उस आदमी ने कहा,जब बड़े आफिसर ने इसे भर्ती किया है, तो ऊगल-गूगल जरूर कोई चीज होती होगी। और मैं क्यों फंसूं, कहूं कि मैं नहीं जानता। मैं हूं इंजीनियर, मुफ्त फंस जाऊंगा कि तुम इंजीनियर हो, तुम्हें यह भी पता नहीं कि ऊगल-गूगल क्या होता है? उसने कहा, अच्छा तो आप ऊगल-गूगल बनाते हैं। यह काम तो सीधे कैप्टेन के अंतर्गत आता है, आप कैप्टेन के पास चले जाइए।

वह आदमी कैप्टेन के पास पहुंच गया। उसने भी पूछा, आप क्या बनाते हैं? उसने कहा, मैं ऊगल-गूगल बनाता हूं। कैप्टेन ने कहा, दो आदमियों ने इसे भेज दिया है, उन्होंने इस बात को स्वीकार नहीं किया कि हम नहीं जानते हैं। मैं क्यों फंसूं? उसने कहा, अच्छा तो आप ऊगल-गूगल बनाते हैं। तो बाजार में जैसे ऊगल-गूगल बिकते हैं, वैसे ही बनाते हैं कि कोई स्पेशल क्वालिटी बनाते हैं? उस आदमी ने कहा कि मैं तो जरा अलग ही ढंग की चीज बनाता हूं। कैप्टेन ने कहा, अच्छी बात है, तो आपके लिए क्या सामान की जरूरत होगी बनाने के लिए? क्योंकि जहाज में बड़ी जरूरत होती है ऊगल-गूगल की।

उसने कहा, मुझे छोटी सी वर्कशाप चाहिए। कुछ नहीं, एक छोटा कमरा चाहिए और ताला चाहिए, ताकि मैं भीतर बैठ कर काम कर सकूं। और मेरा सीक्रेट किसी को पता न चल जाए इसलिए यह दरवाजा बंद रहना चाहिए। एक ऊगल-गूगल कितने दिन में बन जाता है, उस कैप्टेन ने पूछा? उसने कहा, तीन दिन लगते हैं। सामान क्या चाहिए? उसने कहा, औजार मेरे पास हैं, सिर्फ टीन के कुछ चद्दर-पत्तर मुझे चाहिए। वह आप पहुंचा दें।

आप शुरू करिए। ऊगल-गूगल हमने बहुत देखे हैं, लेकिन विशेष आप बनाते हैं, तो हम देखना चाहते हैं। अब वह मन में प्राण चिंतित हो रहा कि यह ऊगल-गूगल बला क्या है? लेकिन कोई इस बात को मानने को राजी नहीं होना चाहता है कि मैं नहीं जानता हूं।

उस आदमी को एक केबिन दे दी गई, ताला डाल दिया गया। वह भीतर तीन दिन तक ठोंक-पीट करता रहा। बड़ी आवाजें आती रहीं। पूरे जहाज पर खबर फैल गई, ऊगल-गूगल! लेकिन सब अपने मन में सोचते थे कि ऊगल-गूगल क्या है? यह ईश्वर क्या है? आत्मा क्या है? मोक्ष क्या है? लेकिन कौन कहे कि ऊगल-गूगल क्या है? क्योंकि जो पूछेगा, वही समझा जाएगा अज्ञानी। बाकी लोग हंसेंगे। बाकी लोग सब ऐसा मालूम पड़ रहे हैं कि जानते हैं। कौन फंसे? सब कहते थे भई, ऊगल-गूगल बन रहा है, तीन दिन के भीतर बन जाएगा।

कोई पूछता नहीं था, यह ऊगल-गूगल है क्या?तीन दिन में तो सारे जहाज में एक ही हवा हो गई। हर आदमी उत्सुक हो गया। लोगों की नींद खो गई कि बला क्या है यह ऊगल-गूगल?

तीसरा दिन आ गया। सारे लोग केबिन के आस-पास इकट्ठे हो गए। अंदर ठोंक-पीठ चल रही है। फिर कैप्टेन की भी हिम्मत टूट गई,उसने जाकर दरवाजा ठोंका और कहा, भई,तीन दिन हो गए, अगर बन गया हो तो बाहर आओ। उसने कहा, पांच मिनट और। चीज तैयार हुई जा रही है। फिर आखिरी चोटें हुईं। सारी भीड़ इकट्ठी हो गई है। कोई किसी से नहीं कह रहा है कि ऊगल-गूगल क्या है? सब जानना चाहते हैं, क्या है? किसी को पता नहीं है।

फिर दरवाजा खुला, वह आदमी बाहर निकला। सब उसकी तरफ देखने लगे। कैप्टेन ने पूछा,कहां है ऊगल-गूगल? उसने अपने पीठ के पीछे से एक चीज निकाली, जैसे कोई टीन के डिब्बे को सब तरफ से पीटा गया हो, इस तरह की शक्ल थी उसकी। उसने कहा, यह ऊगल-गूगल है। अब सब बड़े हैरान हुए! उन्होंने कहा, इसका उपयोग क्या है? यह किस काम में आता है?उसने कहा, आइए मेरे साथ। वह जाकर जहाज के किनारे ले गया और उसने अपने ऊगल-गूगल को पानी में फेंका। जब वह डब्बा पानी में डूबने लगा, तो उससे आवाज निकली--ऊगल-गूगल! यह ऊगल-गूगल था!

लेकिन एक भी आदमी उस जहाज पर यह नहीं कह सका, यह क्या बेवकूफी है? किस चीज का नाम है? क्योंकि हमारे भीतर यह अहंकार बड़ा प्रबल है कि हम जानते हैं।

एक आदमी ईश्वर के बाबत बातें करता रहता है,आत्मा के बाबत, पुनर्जन्म के बाबत। मृत्यु के बाद--मोक्ष, नरक और स्वर्ग। और लोग बैठे सुनते रहते हैं, जैसे कि वह आदमी किन्हीं चीजों की बात कर रहा हो, जिनको जानता है। सुनने वाले भी ऐसे सुनते हैं कि हम भी जानते हैं। बोलने वाला भी शब्द जानता है, सुनने वाले भी शब्द जानते हैं। उनके शब्द मेल खाते हैं,परिचित मालूम होते हैं। वे दोनों राजी मालूम होते हैं किक बिलकुल ठीक है, बिलकुल ठीक है। बिलकुल ठीक है, यह बात बिलकुल सही कही जा रही है।

दुनिया में एक गहरा डिसेप्शन, एक प्रवंचना,एक धोखा चल रहा है शब्दों के नाम पर--ज्ञान का। परंपरा से कोई ज्ञान उपलब्ध नहीं होता,केवल शब्द उपलब्ध होते हैं। और शब्दों को हम ज्ञान समझ कर बैठ जाते हैं।

ओशो
माटी कहे कुम्‍हार सूं-(ध्‍यान-साधना)-प्रवचन-07