ध्यान प्रयोग ~~जैसे ही कुछ करने की वृति हो, रूक जाओ।
तुम क्रोध में हो, और जानते हो कि क्रोध सच्चा है। तुम किसी को नष्ट करने जा रहे हो। या अपने बच्चे को पीटने जा रहे हो। वहां रुको। लेकिन किसी प्रयोजन से नहीं। मत कहो कि क्रोध करना बुरा है, इसलिए मैं रुकता हूं। किसी मानसिक सोच-विचार की जरूरत नहीं है। सोच-विचार से ऊर्जा उसमें ही लग जाती है। यह भीतरी व्यवस्था है। अगर तुम कहते हो कि मुझे बच्चे को नहीं मारना चाहिए। क्योंकि इससे उसका कोई लाभ नहीं होने वाला है। और इससे मेरा भी कोई लाभ नहीं हो सकता है। यह बात ही व्यर्थ है। किसी काम का नहीं है। तो जो ऊर्जा क्रोध बनने जा रही थी, वह सोच-विचार बन जाएगी।
जब तुम सारी चीज पर विचार कर लोगे तो क्रोध की ऊर्जा उतर जाएगी और सोच-विचार में प्रवेश कर जायेगी। उस अवस्था में रूकने पर गति करने के लिए ऊर्जा नहीं रहती है। जब तुम क्रोध में हो विचार मत करो। यह मत कहो कि भला है या बुरा कुछ विचार ही मत करो। एकाएक विधि को स्मरण करो और रूक जाओ।
क्रोध शुद्ध ऊर्जा है—न बुरा है और न भला। क्रोध भला भी हो सकता है। और बुरा भी हो सकता है। यह उसके परिणाम पर निर्भर है। ऊर्जा पर नहीं है। यह बुरा हो सकता है। अगर यह बाहर जाए और किसी को नष्ट करे। अगर यह विध्वंसक हो जाए। वहीं क्रोध सुंदर समाधि में परिणत हो सकता है। अगर वह भीतर मुड़ जाए और वह तुम्हें तुम्हारे केंद्र पर फेंक दे। तब वह फूल बन जाएगा। ऊर्जा मात्र ऊर्जा है। स्वच्छ, निर्दोष, तटस्थ।
तो विचार मत करो। अगर तुम कुछ करने जा रहे हो तो सोचो मत; केवल ठहर जाओ। और ठहरे रहो। उस ठहरने में तुम्हें केंद्र की झलक मिलती है। तुम परिधि को भूल जाओगे। और तुम्हें केंद्र दिखने लगेगा।
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’जैसे ही कुछ करने की वृति हो, रूक जाओ।‘’
इसका प्रयोग करो। इस संबंध में तीन बातें स्मरण रखो। एक, प्रयोग तभी करो जब वृति वास्तविक हो। दो, रूकने के संबंध में विचार मत करो। बस रूक जाओ। तीन, प्रतीक्षा करो। जब तूम ठहर गए तो श्वास न चले, कोई गति न हो—बस प्रतीक्षा करो कि क्या होता है। कोई चेष्टा न हो।
जब मैं कहता हूं कि प्रतीक्षा करो तो उससे मेरा मतलब है कि आंतरिक केंद्र के संबंध में विचार करने की चेष्टा मत करो। यदि चेष्टा की तो फिर चूक जाओगे। केंद्र की मत सोचो। मत सोचो कि अब झलक आने को है। कुछ भी मत सोचो। मात्र प्रतीक्षा करो। वृति को, ऊर्जा को स्वयं करने दो। अगर तुम केंद्र और आत्मा ब्रह्म के बारे में विचार करने लगे तो ऊर्जा उसी विचारणा में लग जाएगी।
तुम बहुत आसानी से आंतरिक ऊर्जा को गंवा सकते हो। एक विचार भी उसे गति देने के लिए काफी है। तब तुम सोचते चले जाओगे। जब मैं कहता हूं कि ठहर जाओ तो उसका मतलब है पूरी तरह, समग्ररूपेण ठहर जाओ। कुछ भी गति न हो—मानो कि सारा जगत ठहर गया है; कोई गति नहीं; केवल तुम हो। उस केवल अस्तित्व में अचानक केंद्र का विस्फोट होता है।~~~~ ओशो
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