प्रेम प्राथना

🌹❤ प्रेम प्राथना ❤🌹

प्रार्थनायें तभी हो सकती हैं, जब तुम्हारा 'मैं' थोड़ा गले। तुम कैसे प्रार्थना करोगे? 'मैं' से भरे तुम्हारी सब प्रार्थनायेंझूठी हैं, सजावट से ज्यादा नहीं हैं। वह भी तुम दूसरों को दिखाने के लिए कर रहे हो। मंदिर में जाओ और अगर कोई प्रार्थना कर रहा हो...कोई न हो, तो धीरे-धीरे करता है, मरा-मरा करता है...चार लोग खड़े हों, जोर से करने लगता है कि इन चार को दिखाई पड़ जाए कि मैं प्रार्थना कर रहा हूं। तुम परमात्मा से प्रार्थना कर रहो हो या लोगों को दिखा रहे हो?लोगों को दिखाने में ज्यादा रस है; परमात्मा सुने या न सुने--लोग सुन लें, लोगों को पता चल जाए कि मैं धार्मिक आदमी हूं।

नहीं, जैसे ही 'मैं' गला, तप हुआ, उपवास हुआ।

उसने बहुत प्रार्थनायें कीं। फिर बहुत चांदों के बाद...।

अनेक रातें आईं, गईं; पूर्णिमायें आईं, गईं--वर्षों बीत गये। और जब तक उसे पक्का भरोसा न हो गया कि 'अब मैं नहीं हूं', तब तक वह लौटा नहीं।

फिर उसने वही द्वार खटखटाये। वही प्रश्न, 'बाहर कौन है?'

लेकिन इस बार उत्तर बदल गया।

इस बार उसने कहा, 'तू ही है।' और इस बार द्वार खुल गये।

क्योंकि प्रेम के द्वार तभी खुलते हैं, जब तुम ऐसे जाते हो जैसे तुम शून्य हो। तुम जब खाली गागर लेकर जाते हो परमात्मा के पास, तो वह सागर उतरता है। जब तुम खुद ही भरे हुए पहुंचते हो, तुम्हें और भरने का उपाय नहीं।

वर्षा होती है पहाड़ों पर भी, झीलों में भी, खाइयों में भी। पहाड़ खाली के खाली रह जाते हैं, वर्षा का पानी बह जाता है, गङ्ढे भर जाते हैं, झीलें बन जाती हैं। पहाड़ पहले से ही खड़े हैं, उनकी अकड़ का कोई अंत नहीं; झीलें खाली हैं। परमात्मा तो सब पर बरस रहा है। अगर तुम्हारे 'मैं' का पहाड़ मौजूद है, तुम खाली रह जाओगे। अगर 'ना-मैं' की झील गहरी है, गङ्ढा गहरा है, तुम भर जाओगे। जो खाली हैं, वे भर दिये जायेंगे; जो भरे हैं, वे खाली रह जायेंगे--यही पात्रता है।

एकमात्र पात्रता है--तुम्हारा परिपूर्ण खाली होना। जिस दिन तुम परिपूर्ण खाली हो, उस दिन अतिथि आयेगा। उस दिन सच तो यह, तुम्हें उसके द्वार पर जाकर दस्तक देने की जरूरत न होगी, वह आयेगा और तुम्हारे द्वार पर स्वयं दस्तक देगा।

'पाछे पाछे हरि फिरें, कहत कबीर कबीर।'

वह तुम्हें बुलाता, तुम्हें खोजता आ जायेगा। अहंकार के साथ तुम उसे खोजते हो, कभी खोज न पाओगे; निरहंकार होते ही वह तुम्हें खोजता चला आता है। यह खोजएकत्तरफा नहीं है। तुम्हीं परमात्मा को नहीं खोज रहे हो,परमात्मा भी तुम्हें खोज रहा है। तुम अकेले ही उसे नहीं पुकार रहे हो, उसने भी तुम्हें पुकारा है। तुम अकेले ही उससे मिलकर आनंदित न होओगे, वह भी परम आनंदित होगा। उस दिन पूरा अस्तित्व प्रफुल्लित होगा, जिस दिन तुम घर लौट आओगे।

लेकिन अगर 'मैं' से भरकर तुमने पुकारा, तुम्हारी कोई पुकार वहां तक न पहुंचेगी; घर खाली नहीं है। वह आये भी तो कैसे आये? द्वार बंद है। वह प्रवेश भी करे तो कैसे प्रवेश करे? तुम पीठ किए खड़े हो। वह तुम्हें खोजे भी तो कैसेखोजे? तुमने सब तरफ से बाधायें खड़ी कर रखी हैं। और तुम प्रार्थनायें भी कर रहे हो। प्रार्थनाओं का मूल्य नहीं है, तुम मिट जाओ। क्योंकि तुम्हारा मिटना ही एक मात्र प्रार्थना है।

             🌹❤ Osho ❤🌹
                                   
🌹🌹 Zorba The Buddha 🌹🌹

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