तुम झूठ में ही जीते हो। कोई तुमसे कह देता है कि मैं तुम्हें प्रेम करता हूं और तुम प्रफुल्लित हो जाते हो। और तुमने कभी यह सोचा ही नहीं कि तुम में प्रेम करने योग्य है क्या, जो कोई तुम्हें प्रेम करेगा! तुम्हें अगर कोई याद दिलाए कि तुम में प्रेम करने योग्य कुछ है ही नहीं, भाई मेरे तुम्हें कोई प्रेम करेगा कैसे? तो तुम नाराज हो जाओगे। उसने तुम्हारी सत्य छू दी। उसने तुम्हारा दर्द छेड़ दिया। उसने तुम्हारा सत्य छू दिया। उसने तुम्हारी रग छू दिया। तुम मलहमपट्टी चाहते हो। तुम चाहते हो लोग कहे : तुम बड़े प्यारे हो, बड़े भले हो! और तुम जानते हो कि ऐसे तुम नहीं हो। जानते हो, इसलिए इसको छिपाना चाहते हो। तुम उन्हीं लोगों का आदर करते हो, जो तुम्हारे मन को किसी न किसी रूप में सांत्वना दिए चले जाते है?
इसलिए तो दुनिया में खुशामद का इतना प्रभाव है। स्तुति का इतना चमत्कारी प्रभाव है! तुम कैसे ही कुरूप से कुरूप आदमी से कहो कि तुम सुंदर हो, वह मान लेता है। और तुम मूढ़ से मूढ़ से कहो कि आपकी प्रतिमा अपूर्व है, वह मान लेता है। तुम अंधे आदमी से कहो की तुम्हारी दृष्टि बड़ी दूरगामी है और वो मान लेता है। शक ही नहीं पैदा होता। मानना चाहता है। उसे पता है वह अंधा है। वह बात अखरती है, वह खटकती है। कोई कह देता है कि '' क्या पागल हुए हो, तुम और अंधे! ऐसे प्यारे नेत्र तो कभी देखे नहीं। ऐसे सुख देनेवाले नेत्र तो कभी देखे नहीं! '' और उसके भीतर भी गुदगुदी पैदा होती है, और वह स्वीकार कर लेता है कि तुम ठीक कहते होओगे। वह मानना चाहता है कि तुम ठीक ही कहते होओगे। वह मान लेता है।
# *का सोवै दिन रैना -प्र -2*
*ओशो*
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