डॉ.जगदीशचन्द्र बसु के बाद दूसरा
एक बड़ा नाम एक अमरीकन का है,
क्लीव बैक्स्टर का।
एक बड़ा नाम एक अमरीकन का है,
क्लीव बैक्स्टर का।
जगदीशचन्द्र ने तो कहा था कि पौधों में प्राण हैं।
बैक्स्टर ने सिद्ध किया है—सिद्ध हो गया है
कि पौधों में भावना भी है।
और पौधे अपने मित्रों को पहचानते हैं
और शत्रुओं को भी। पौधा अपने मालिक
को भी पहचानता है और अपने माली को भी।
बैक्स्टर ने सिद्ध किया है—सिद्ध हो गया है
कि पौधों में भावना भी है।
और पौधे अपने मित्रों को पहचानते हैं
और शत्रुओं को भी। पौधा अपने मालिक
को भी पहचानता है और अपने माली को भी।
और अगर मालिक मर जाता है
तो पौधे की प्राण—धारा क्षीण हो जाती है,
वह बीमार हो जाता है।
पौधों की स्मृति को भी बैक्स्टर ने सिद्ध किया है
कि उनकी भी मैमोरी है।
तो पौधे की प्राण—धारा क्षीण हो जाती है,
वह बीमार हो जाता है।
पौधों की स्मृति को भी बैक्स्टर ने सिद्ध किया है
कि उनकी भी मैमोरी है।
और आप जब अपने गुलाब के पौधे
के पास जाकर प्रेम से खड़े हो जाते हैं
तब वह कल फिर आपकी उसी
समय प्रतीक्षा करता है। वह याद रखता है
कि आज आप नहीं आये। या जब आप
पौधे के पास प्रेम से भरकर खड़े हो जाते हैं,
फिर अचानक एक फूल तोड़ लेते हैं
के पास जाकर प्रेम से खड़े हो जाते हैं
तब वह कल फिर आपकी उसी
समय प्रतीक्षा करता है। वह याद रखता है
कि आज आप नहीं आये। या जब आप
पौधे के पास प्रेम से भरकर खड़े हो जाते हैं,
फिर अचानक एक फूल तोड़ लेते हैं
तो पौधे को बडी हैरानी होती है,
बड़ा कंफ्यूजन होता है।
इस सबकी प्राणधाराओं को रिकार्ड
करने वाले यंत्र तैयार किये हैं बैक्स्टर ने
कि पौधा एकदम कंफ्यूज्ड हो जाता है,
बड़ा कंफ्यूजन होता है।
इस सबकी प्राणधाराओं को रिकार्ड
करने वाले यंत्र तैयार किये हैं बैक्स्टर ने
कि पौधा एकदम कंफ्यूज्ड हो जाता है,
उसकी समझ में नहीं आता कि जो
आदमी इतने प्रेम से खड़ा था,
उसने फूल कैसे तोड़ लिया।
वह ऐसे ही कंफ्यूज्ड हो जाता है
जैसे कोई बच्चा आपके पास खड़ा हो,
प्रेम करते—करते एकदम गर्दन तोड़ लें
कि चेहरा बहुत अच्छा लगता है।
पौधे की समझ में बिलकुल नहीं आता
कि यह हो क्या गया!
उसके भीतर बड़ा कंफ्यूजन पैदा होता है।
आदमी इतने प्रेम से खड़ा था,
उसने फूल कैसे तोड़ लिया।
वह ऐसे ही कंफ्यूज्ड हो जाता है
जैसे कोई बच्चा आपके पास खड़ा हो,
प्रेम करते—करते एकदम गर्दन तोड़ लें
कि चेहरा बहुत अच्छा लगता है।
पौधे की समझ में बिलकुल नहीं आता
कि यह हो क्या गया!
उसके भीतर बड़ा कंफ्यूजन पैदा होता है।
बैक्स्टर कहता है —
हमने हजारों पौधों को कंफ्यूज किया,
उनको हम बड़ी परेशानी में डाले हुए हैं।
वे समझ ही नहीं पाते कि यह हो क्या रहा है!
जिसको मित्र की तरह अनुभव कर रहे थे
वह एकदम शत्रु की तरह हो जाता है।
हमने हजारों पौधों को कंफ्यूज किया,
उनको हम बड़ी परेशानी में डाले हुए हैं।
वे समझ ही नहीं पाते कि यह हो क्या रहा है!
जिसको मित्र की तरह अनुभव कर रहे थे
वह एकदम शत्रु की तरह हो जाता है।
बैक्स्टर का यह भी कहना है
कि जिन पौधों को हम प्रेम करते हैं
वे हमारी तरफ बड़ी पाजिटिव भावनाएं छोड़ते हैं।
कि जिन पौधों को हम प्रेम करते हैं
वे हमारी तरफ बड़ी पाजिटिव भावनाएं छोड़ते हैं।
और बैक्स्टर ने सुझाव दिया है
अमरीकन मेडिकल एसोसिएशन को
कि शीघ्र ही हम विशेष तरह के मरीजों
को विशेष पौधों के पास ले जाकर
ठीक करने में समर्थ हो जाएंगे—
अमरीकन मेडिकल एसोसिएशन को
कि शीघ्र ही हम विशेष तरह के मरीजों
को विशेष पौधों के पास ले जाकर
ठीक करने में समर्थ हो जाएंगे—
अगर उन पौधों को हमने इतना
प्राणवान कर दिया —प्रेम से, भाव से,
संगीत से, प्रार्थना से, ध्यान से।
उनको इतना प्राण—शक्ति से भर दिया है
तो उनके पास विशेष तरह के मरीज ले
जाने से फायदा होगा।
प्राणवान कर दिया —प्रेम से, भाव से,
संगीत से, प्रार्थना से, ध्यान से।
उनको इतना प्राण—शक्ति से भर दिया है
तो उनके पास विशेष तरह के मरीज ले
जाने से फायदा होगा।
फिर हर पौधे में अपनी—अपनी प्राण—ऊर्जा की
विशेषताएं हैं। जैसे रेड रोज़, लाल जो गुलाब है,
वह क्रोधी लोगों के लिए बड़े फायदे का है।
हो सकता है
विशेषताएं हैं। जैसे रेड रोज़, लाल जो गुलाब है,
वह क्रोधी लोगों के लिए बड़े फायदे का है।
हो सकता है
पंडित नेहरू को इसीलिए उससे प्रेम रहा हो।
क्रोध के लिए रेड रोज़ बहुत फायदे का है
बैक्स्टर के हिसाब से। वह क्रोध को कम करता है,
वह अक्रोध की धारणा को अपने चारों तरफ फैलाता है।
उसका भी अपना आभामंडल है।
क्रोध के लिए रेड रोज़ बहुत फायदे का है
बैक्स्टर के हिसाब से। वह क्रोध को कम करता है,
वह अक्रोध की धारणा को अपने चारों तरफ फैलाता है।
उसका भी अपना आभामंडल है।
पौधों के पास भी हृदय है।
माना कि वे अशिक्षित हैं,
लेकिन उनके पास हृदय है।
आदमी बहुत शिक्षित होता चला जाता है
लेकिन हृदय खोता चला जाता है।
माना कि वे अशिक्षित हैं,
लेकिन उनके पास हृदय है।
आदमी बहुत शिक्षित होता चला जाता है
लेकिन हृदय खोता चला जाता है।
महावीर वाणी, भाग-१,
प्रवचन#२, ओशो
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