कामवासना से ऊपर उठो

कामवासना से ऊपर उठो। ध्यान रखना, मैं कहता हूं, ' ऊपर उठो', दूर जाने की नहीं कह रहा हूं, पार जाने की कह रहा हूं। ऊपर उठने का अर्थ है : तुम्हारी बुनियाद में कामवासना बनी ही रहेगी, तुम ऊपर उठे, भवन उठा, बुनियाद से ऊपर चला, बुनियाद तो बनी ही रहेगी।

कामवासना में क्षण-भर को दो शरीर करीब आते है - क्षण-भर को ही आ सकते हैं, क्योंकि शरीर बड़े स्थूल हैं। उनकी सीमाएं बड़ी स्पष्ट हैं। करीब ही आ सकते हैं, एक तो नहीं हो सकते।

प्रेम में दो मन करीब आते हैं, क्षण-भर को एक भी हो जाते हैं - क्योंकि मन की सीमाएं तरल हैं, ठोस नहीं। जब दो मन मिलते हैं तो दो मन नहीं रह जाते, क्षण-भर को एक ही मन रह जाता है।

भक्ति में दो आत्माएं करीब आती हैं, दो चैतन्य करीब आते हैं -- व्यक्ति का और समष्टि का,  बूंद का और सागर का, कण का और विराट का।  और सदा के लिए एक हो जाते हैं।

कामवासना में शरीर करीब आते है और दूर फिक जाते हैं। इसलिए कामवासना में सदा ही विषाद है। मिलने का सुख तो बहुत थोड़ा है,  दूर हट जाने की पीड़ा बहुत गहन है। इसलिए ऐसा व्यक्ति खोजना कठिन है जो कामवासना के बाद पछताया न हो।  पछतावा कामवासना का नहीं है। कामवासना पास ले आती है, लेकिन तत्क्षण दूर फेंक आती है। जितने हम दूर पहले थे, उससे भी ज्यादा दूर हो जाते हैं। यह क्षण-भर पास आना दूरी को और प्रगाढ़ कर देता है, दूरी अनंत हो जाती है।

प्रेम में खोना और पाना बराबर है। कामवासना में खोना ज्यादा है, पाना नाकुछ है। प्रेम में एक संतुलन है; खोना-पाना बराबर है;  तराजू के दोनों पलडे़ बराबर है।  तो तुम प्रेमी में एक तरह की तृप्ति पाओगे जो कामी में न मिलेगी। कामी हमेशा अतृप्त मिलेगा;  विषाद से भरा मिलेगा; पश्चाताप से भरा मिलेगा :    '
' कुछ खो रहा है, कुछ खो रहा है!  जीवन में कहीं कोई चूक हो रही है, भूल हो रही है।'

फिर भक्त की दुनिया है - जहां पाना ही पाना है और खोना नहीं है। कामी की दुनिया है - जहां खोना ही खोना है, पाना नहीं है। और भक्त की दुनिया है - ठीक विपरीत, दूसरा छोर, जहां पाना ही पाना है, खोना नहीं है। तब अहोभाव पैदा होता है, तब मीरा पद घुंघरू बांध नाचती है। तब नृत्य आता है। तब कोई उलझन नहीं है,  तब कोई प्रश्न नहीं है। तब सब प्रश्न हल हुए। तब जीवन पहली बार अर्थवता से भरा! और तब पहली बार धन्यवाद में सिर झुकता है!

ओशो,
भक्ति सूत्र

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