समाधी का अंतिम सुत्र : प्रतिक्षा
जीवन का एक नियम है कि अगर तुम प्रतीक्षा कर सको तो सभी चीजें पूरी हो जाती हैं। जीवन का ढंग चीजों को पूरा करने का है; अगर तुम प्रतीक्षा कर सको। कच्चे फल मत तोड़ो, थोड़ी प्रतीक्षा करो; वे पकेंगे, गिरेंगे। तुम्हें तोड़ना भी न पड़ेगा, वृक्ष पर चढ़ना भी न पड़ेगा। जीवन का नियम है चीजों को पूर्ण करना। यहां सब चीजें पूरी होती हैं, सिर्फ प्रतीक्षा चाहिए।
लेकिन तुमने अगर जल्दी की तो तुम कच्चा फल तोड़ ले सकते हो। तब तुम्हें वृक्ष पर भी चढ़ना पड़ेगा और हाथ-पैर भी तोड़ ले सकते हो गिरकर, और कच्चा फल हाथ लगेगा। और एक दफा वृक्ष से टूट गया तो उसके पकने के उपाय समाप्त हो गये। अगर उसको घर में रखकर तुमने पकाया तो वह पकना नहीं है, वह केवल सड़ना है क्योंकि पकने के लिए जीवंत ऊर्जा चाहिए। वह फिर ऐसा है, जैसे किसी ने धूप में बाल सफेद कर लिये हों। वह अनुभव प्रौढ़ता में नहीं, जीवन की प्रक्रिया से गुजरकर नहीं।
तो तुम घर में छिपाकर भी फल को पका सकते हो, लेकिन वह सिर्फ सड़ा हुआ फल है। पकने के लिए तो जीवंत ऊर्जा चाहिए थी वृक्ष की, उससे तुमने उसे तोड़ लिया। हर चीज पकती है। यहां बिना पका कुछ भी नहीं रह जाता। हर चीज पूर्णता पर पहुंचती है। जल्दी भर नहीं करना! हमारा मन बड़ी जल्दी करता है।
ओशो : बिन बाती बिन तेल–(सूफीकथा) प्रवचन–14
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