क्या ध्यान में कोई खतरा तो नहीं है?

क्या ध्यान में कोई खतरा तो नहीं है?


ध्यान सबसे बड़ा खतरा है, क्योंकि ध्यान सबसे गहरे जीवन की उपलब्धि में ले जाने का द्वार है।
नहीं, वे मित्र पूछते हैं कि खतरा है तो जाएं ही क्यों?
मैं कहता हूं, खतरा है इसलिए ही जाएं। 
खतरा न होता तो जाने की बहुत जरूरत न थी। जहां खतरा न हो वहां जाना ही मत, क्योंकि वहां सिवाय मौत के और कुछ भी नहीं है।
जहां खतरा हो वहां जरूर जाना, क्योंकि वहां जीवन की संभावना है।
लेकिन हम सब सुरक्षा के प्रेमी हैं, सिक्योरिटी के प्रेमी हैं। इनसिक्योरिटी, असुरक्षा है, खतरा है, तो भागते हैं भयभीत होकर, डरते हैं, छिप जाते हैं। ऐसे-ऐसे हम जीवन खो देते हैं। जीवन को बचाने में बहुत लोग जीवन खो देते हैं।
जीवन को तो वे ही जी पाते हैं जो जीवन को बचाते नहीं, बल्कि उछालते हुए चलते हैं। खतरा तो है। इसीलिए जाना, क्योंकि खतरा है। और बड़े से बड़ा खतरा है। और गौरीशंकर की चोटी पर चढ़ने में इतना खतरा नहीं है। और न चांद पर जाने में इतना खतरा है। अभी यात्री भटक गए थे, तो बड़ा खतरा है।
लेकिन खतरा वस्त्रों को ही था। शरीर ही बदल सकते थे। लेकिन ध्यान में खतरा बड़ा है, चांद पर जाने से बड़ा है।
खतरा है, इसीलिए निमंत्रण है; इसीलिए जाएं।
और खतरा कोयले को है, हीरे को नहीं; खतरा नदी को है, सागर को नहीं; खतरा आपको है, आपके भीतर जो परमात्मा है उसको नहीं। अब सोच लें: अपने को बचाना है तो परमात्मा खोना पड़ता है; और परमात्मा को पाना है तो अपने को खोना पड़ता है।
जीसस से किसी ने एक रात जाकर पूछा था कि मैं क्या करूं कि उस ईश्वर को पा सकूं जिसकी तुम बात करते हो?
तो जीसस ने कहा, तुम कुछ और मत करो, सिर्फ अपने को खो दो, अपने को बचाओ मत। उसने कहा, कैसी बातें कर रहे हैं आप! खोने से मुझे क्या मिलेगा? तो जीसस ने कहा, जो खोता है, वह अपने को पा लेता है; और जो अपने को बचाता है, वह सदा के लिए खो देता है।
जिन खोजा तिन पाइया
ओशो —

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