तंत्र-सूत्र—विधि

तंत्र-सूत्र—विधि-11
शिथिल होने की दूसरी विधि:
तंत्र-सूत्र—विधि-11 विज्ञान भैरव
तंत्र-ओशो
जब चींटी के रेंगने
की अनुभूति हो तो इंद्रियों के द्वार
बंद कर दो। तब।
यह बहुत सरल दिखता है। लेकिन
उतना सरल है नहीं। मैं इसे फिर से
पढ़ता हूं, ‘’ जब चींटी के रेंगने
की अनुभूति हो तो इंद्रियों के द्वार
बंद कर दो। तब।‘’ यक एक उदाहरण मात्र
है। किसी भी चीज से काम चलेगा।
इंद्रियों के द्वार बंद कर दो जब
चींटी के रेंगने की अनुभूति हो। और तब
—तब घटना घट जाएगी। शिव कह
क्याज रहे है?
तुम्हायरे पाँव में कांटा गड़ा है। वह दर्द
देता है, तुम तकलीफ में हो। या तुम्हाेरे
पाँव पर एक चींटी रेंग रही है। तुम्हेंग
उसका रेंगना महसूस होता है। और तुम
अचानक उसे हटाना चाहते हो।
किसी भी अनुभव को ले सकते है। तुम्हेंे
धाव है जो दुखता है। तुम्हासरे सिर में
दर्द है, या कहीं शरीर में दर्द है। विषय
के रूप में किसी से भी काम चलेगा।
चींटी का रेंगना उदाहरण भर है।
शिव कहते है: ‘’जब चींटी के रेंगने
की अनुभूति हो तो इंद्रियों के
द्वारा बंद कर दो।‘’
जो भी अनुभव हो, इंद्रियों के सब
द्वार बंद कर दो करना क्या है? आंखें बंद
कर लो और सोचो कि मैं अंधा हूं और देख
नहीं सकता। अपने कान बंद कर लो और
सोचो कि मैं सुन नहीं सकता। पाँच
इंद्रियाँ है, उन सब को बंद कर लो।
लेकिन उन्हेंध बंद कैसे करोगे।
यह आसान नहीं है। क्षण भर के लिए
श्वा स लेना बंद कर दो, और
तुम्हाखरी सब इंद्रियाँ बंद
हो जायेगी। और जब श्वाबस रुकी है
और इंद्रियाँ बंद है, तो रेंगना कहां है?
चींटी कहां है? अचानक तुम दूर, बहुत दूर
हो जाते हो।
मरे एक मित्र है, वृद्ध है। वे एक बार
सीढ़ी से गिर पड़े। और डॉक्टरों ने
कहा कि अब वे तीन महीनों तक खाट
से नहीं हिल सकेंगे। तीन महीने
विश्राम में रहना है। और वे बहुत अशांत
व्याक्ति थे। पड़े रहना उनके लिए
कठिन था। मैं उन्हेंं देखने गया। उन्होंनने
कहा कि मेरे लिए प्रार्थना करें और मुझे
आशीष दें कि में मर जाऊं।
क्योंनकि तीन महीने पड़े रहना मौत से
भी बदतर है। मैं पत्थर की तरह कैसे
पडा रह सकता हूं। और सब कहते है
कि हिलिए मत।
मैंने उनसे कहा, यह अच्छाे मौका है। आंखें
बंद करें और सोचें कि मैं पत्थर हूं,
मूर्तिवत। अब आप हिल नहीं सकते।
आखिर कैसे हिलेंगे। आँख बंद करें और
पत्थर की मूर्ति हो जाएं। उन्होंतने
पूछा कि उससे क्यात होगा। मैंने
कहा की प्रयोग तो करें। मैं यहां बैठा हूं।
और कुछ किया भी नहीं जा सकता।
जैसे भी हो आपको तो यहां तीन
महीने पड़े रहना है। इसलिए प्रयोग करें।
वैसे तो वे प्रयोग करने वाले जीव
नहीं थे। लेकिन उनकी यह
स्थिति ही इतनी असंभव
थी कि उन्होंिने कहा कि अच्छाी मैं
प्रयोग करूंगा। शायद कुछ हो। वैसे मुझे
भरोसा नहीं आता कि सिर्फ यह
सोचने से कि मैं पत्थरवत हूं, कुछ होने
वाला है। लेकिन मैं प्रयोग करूंगा। और
उन्होंछने किया।
मुझे भी भरोसा नहीं था कि कुछ होने
वाला है। क्योंकि वे आदमी ही ऐसे थे।
लेकिन कभी-कभी जब तुम असंभव और
निराश स्थिकति में होते
हो तो चीजें घटित होने लगती है।
उन्होंचने आंखें बंद कर ली। मैं
सोचता था कि दो तीन मिनट में वे
आंखे खोलेंगे। और कहेंगे कि कुछ नहीं हुआ।
लेकिन उन्होंतने आंखें नहीं खोली।
तीस मिनट गुजर गए। और मैं देख
सका कि वे पत्थर हो गए है। उनके माथे
पर से सभी तनाव विलीन हो गए।
उनका चेहरा बदल गया। मुझे कही और
जाना था, लेकिन वे आंखे बंद किए पड़े थे।
और वे इतने शांत थे मानो मर गए है।
उनकी श्वाास शांत हो चली थी।
लेकिन क्योंेकि मुझे जाना था,
इसलिए मैंने उनसे कहा कि अब आंखे
खोलें और बताएं कि क्या हुआ।
उन्हों।ने जब आंखे खोली तब वे एक दूसरे
ही आदमी थे। उन्होंचने कहा, यह
तो चमत्का्र है। आपने मेरे साथ
क्या किया, मैंने कुछ भी नहीं किया।
उन्होंसने फिर कहा कि आपने जरूर कुछ
किया, क्योंोकि यह तो चमत्का्र है।
जब मैंने सोचना शुरू किया कि मैं पत्थर
जैसा हूं तो अचानक यह भाव
आया कि यदि मैं अपने हाथ
हिलाना भी चाहता हूं तो उन्हेंं
हिलाना भी असंभव है। मैंने कर्इ बार
अपनी आंखें खोलनी चाही, लेकिन वे
पत्थर जैसी हो गई थी। और नहीं खुल
पा रही थी। और उन्होंतने कहा, मैं
चिंतित भी होने लगा कि आप क्या,
कहेंगे, इतनी देर हुई जाती है, लेकिन मैं
असमर्थ था। मैं तीस मिनट तक हिल
नहीं सका। और जब सब गति बंद हो गई
तो अचानक संसार विलीन हो गया।
और मैं अकेला रह गया। अपने आप में गहरे
चला गया। और उसके साथ दर्द
भी जाता रहा।
उन्हें। भारी दर्द था। रात
को ट्रैंक्विलाइजर के बिना उन्हेंख
नींद नहीं आती थी। और वैसा दर्द
चला गया। मैंने उनसे पूछा कि जब दर्द
विलीन हो रहा था तो उन्हेंर
कैसा अनुभव हो रहा था। उन्होंीने
कहा कि पहले तो लगा कि दर्द है, पर
कहीं दूर पर है, किसी और
को हो रहा है। और धीरे-धीरे वह दूर
और दूर होता गया। और फिर एक दम से
ला पता हो गया। कोई दस मिनट तक
दर्द नहीं था। पत्थर के शरीर को दर्द
कैसे हो सकता है।
यह विधि कहती है: ‘’इंद्रियों के
द्वारा बंद कर दो।‘’
पत्थर की तरह हो जाओ। जब तुम सच में
संसार के लिए बंद हो जाते हो तो तुम
अपने शरीर के प्रति भी बंद हो जाते
हो। क्योंंकि तुम्हालरा शरीर
तुम्हातरा हिस्सार न होकर संसार
का हिस्साद है। जब तुम संसार के
प्रति बिलकुल बंद हो जाते
हो तो अपने शरीर के प्रति भी बंद
हो गए। और तब शिव कहते है, तब
घटना घटेगी।
इसलिए शरीर के साथ इसका प्रयोग
करो। किसी भी चीज से काम चल
जाएगा।
रेंगती चींटी ही जरूरी नहीं है।
नहीं तो तुम सोचोगे कि जब
चींटी रेंगेगी तो ध्या न करेंगे। और
ऐसी सहायता करने
वाली चींटियाँ आसानी से
नहीं मिलती। इसलिए
किसी सी भी चलेगा। तुम अपने
बिस्तर पर पड़े हो और ठंडी चादर
महसूस हो रही है। उसी क्षण मृत
हो जाओ। अचानक चादर दूर होने
लगेगी। विलीन हो जाएगी। तुम बंद
हो, मृत हो, पत्थर जैसे हो, जिसमे कोई
भी रंध्र नहीं है, तुम हिल नहीं सकते।
और जब तुम हिल नहीं सकते तो तुम अपने
पर फेंक दिये जाते हो। अपने में केंद्रित
हो जाते हो। और तब पहली बार तुम अपने
केंद्र से देख सकते हो। और एक बार जब
अपने केंद्र से देख लिया तो फिर तुम
वही व्यतक्तिस नहीं रह जाओगे जो थे।
ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र
(तंत्र-सूत्र—भाग-1)

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